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संक्षेप में, वेदों में इस संसार में दृश्यमान एवं प्रकट प्राकृतिक शक्तियों के स्वरूप को समझने, उन्हें अपनी कल्पनानुसार विभिन्न देवताओं का जामा पहनाकर उनकी आराधना करने, उन्हें तुष्ट करने तथा उनसे सांसारिक सफलता व संपन्नता एवं सुरक्षा पाने के प्रयत्न किए गए थे। उन तक अपनी श्रद्धा को पहुँचाने का माध्यम यज्ञों को बनाया गया था। उपनिषदों में उन अनेक प्रयत्नों का विवरण है जो इन प्राकृतिक शक्तियों के पीछे की परमशक्ति या सृष्टि की सर्वोच्च सत्ता से साक्षात्कार करने की मनोकामना के साथ किए गए। मानवीय कल्पना, चिंतन-क्षमता, अंतर्दृष्टि की क्षमता जहाँ तक उस समय के दार्शनिकों, मनीषियों या ऋषियों को पहुँचा सकीं उन्होंने पहुँचने का भरसक प्रयत्न किया। यही उनका तप था।
🌴दु:ख भुगतना ही, कर्म का कटना🌴

  *हमारे कर्म काटने के लिए ही हमको दु:ख दिये जाते है, दु:ख का कारण तो हमारे अपने ही कर्म है, जिनको हमें भुगतना ही है। यदि दु:ख नही आयेगें तो कर्म कैसे कटेंगे?*

   *एक छोटे बच्चे को उसकी माता साबुन से मलमल के नहलाती है जिससे बच्चा रोता है, परंतु उस माता को, उसके रोने की, कुछ भी परवाह नही है, जब तक उसके शरीर पर मैल दिखता है, तब तक उसी तरह से नहलाना जारी रखती है, और जब मैल निकल जाता है, तब ही मलना, रगड़ना बंद करती है।*

  *वह उसका मैल निकालने  के लिए ही उसे मलती, रगड़ती है, कुछ द्वेषभाव से नहीं ।*

  *माँ उसको दु:ख देने के अभिप्राय से नहीं रगड़ती,  परंतु बच्चा इस बात को समझता नहीं इसलिए इससे रोता है।*

  *इसी तरह हमको दु:ख देने से परमेश्वर को कोई लाभ नहीं है, परंतु हमारे पूर्वजन्मों के कर्म काटने के लिए, हमको पापों से बचाने के लिए और जगत का मिथ्यापन बताने के लिए वह हमको दु:ख देता है।*

  *अर्थात् जब तक हमारे पाप नहीं धुल जाते, तब तक हमारे रोने चिल्लाने पर भी परमेश्वर हमको नहीं छोड़ता ।*

  *इसलिए दु:ख से निराश न होकर, हमें मालिक से मिलने के बारे मे विचार करना चाहिए और भजन सुमिरन का ध्यान करना चाहिए जी..!!*

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*श्रावण मास शिव तत्व*

   *भगवान महादेव जैसा परमार्थी और वैरागी कोई दूसरा देव नहीं है। भगवान शिव की करुणा तो देखिए एक भक्त की पुकार पर गंगा के विराट अति तीव्र वेग को भी सहर्ष अपने मस्तक पर सह लेते हैं।। बाद में लोक कल्याण की भावना को ध्यान में रखते हुए गंगा को मुक्त भी कर देते हैं। दुनिया का रिवाज यह है कि यहाँ पर आदमी दूसरों से पाना तो बहुत कुछ चाहता है मगर बाँटना नहीं चाहता। भगवान शिव की जटाओं में समाहित गंगा से हमें यह सीख लेनी चाहिए।। चाहे हमारी कितनी ही प्यारी वस्तु क्यों न हो मगर जरुरत पड़ने पर जैसे भगवान शिव ने माँ गंगा को मुक्त किया ऐसे ही दूसरों के कल्याण की भावना से हमें भी उस वस्तु का परित्याग करना ही चाहिए। लोक मंगल के लिए किया गया प्रत्येक कार्य शिव पूजन ही तो है।दिशा दिखाने वाला सही मिल जाए तो, दिये का प्रकाश भी सूर्य का काम करता हैं।।*


[😊
जब प्रेम गहरा होता है, आप बोल कर नहीं कहते उस व्यक्ति को ह्रदय से लगा लेते हैं। आप प्रेम करते हैं, क्योंकि यह आपका स्वभाव है।। एक दीया जलता है, कोई भी उसके पास से निकले उसकी रोशनी गिरती है, रोशनी दीये का स्वभाव है, वह गिरती है।। दूसरा प्रेम करता है, अथवा घृणा यह अर्थहीन है। उसे जो करना है, करने दें।। आपको प्रेम करना है करते रहिये। देर भले लग जाए जीत प्रेम की ही होगी।।

    
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[: हमारे कर्म काटने के लिए ही हमको दु:ख दिये जाते है, दु:ख का कारण तो हमारे अपने ही कर्म है, जिनको हमें भुगतना ही है। यदि दु:ख नही आयेगें तो कर्म कैसे कटेंगे।। एक छोटे बच्चे को उसकी माता साबुन से मलमल के नहलाती है जिससे बच्चा रोता है, परंतु उस माता को, उसके रोने की, कुछ भी परवाह नही है, जब तक उसके शरीर पर मैल दिखता है, तब तक उसी तरह से नहलाना जारी रखती है, और जब मैल निकल जाता है, तब ही मलना, रगड़ना बंद करती है। वह उसका मैल निकालने के लिए ही उसे मलती, रगड़ती है, कुछ द्वेषभाव से नहीं।। माँ उसको दु:ख देने के अभिप्राय से नहीं रगड़ती, परंतु बच्चा इस बात को समझता नहीं इसलिए इससे रोता है। इसी तरह हमको दु:ख देने से परमेश्वर को कोई लाभ नहीं है, परंतु हमारे पूर्वजन्मों के कर्म काटने के लिए, हमको पापों से बचाने के लिए और जगत का मिथ्यापन बताने के लिए वह हमको दु:ख देता है।। अर्थात् जब तक हमारे पाप नहीं धुल जाते, तब तक हमारे रोने चिल्लाने पर भी परमेश्वर हमको नहीं छोड़ता।इसलिए दु:ख से निराश न होकर, हमें मालिक से मिलने के बारे मे विचार करना चाहिए और भजन सुमिरन का ध्यान करना चाहिए जी।।

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