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प्रभु जी
शास्त्रों में बहुत सी बातें और विषय बहुत ही गूढ़ हैं..
उनको समझने के लिए.. गहन ज्ञान और मनन की जरूरत है..

सोमरस भी एक ऐसा ही विषय है।

आजकल ज्यादातर टी.वी. सीरियल में दिखाया जाता है कि देवराज इन्द्र की सभा में सुन्दर अप्सराएँ सोमरस पिलाती हैं और सभी देव उसका आनन्द लेते हैं…
इस सोम रस को लोग शराब बताया करते हैं पर ये धारणा बिल्कुल गलत है…
ज्यादातर सीरियल और फिल्में सनातन विरोधी विधर्मियों के द्वारा की गई फंडिंग से बनती है इस कारण भी विरोधियों द्वारा ऐसी बाते फैलाई जाती है।
अक्सर शराब के समर्थक यह कहते सुने गए हैं कि देवता भी तो शराब पीते थे…
सोमरस क्या था, शराब ही तो थी.. क्या सच में वैदिक काल में सोमरस के रूप में शराब का प्रचलन था या ये सिर्फ एक भ्रम है..? इसकी जानकारी के लिए वेदों की ओर जाना होगा।

बात अभी जारी रहेगी…
प्रभु जी प्राचीन काल मे आचार- विचार की पवित्रता का इतना ध्यान रखा जाता था कि कोई इस पवित्रता को भंग करता था तो उसका बहिष्कार कर दिया जाता था या फिर उसे कठिन प्रायश्चित करने होते थे..!

फिर ये भी तो सच है की धर्म-अध्यात्म की किताबों में हम जगह जगह पर नशे की निंदा या बुराई सुनते हैं, तब धर्म के रचनाकर और देवता कैसे शराब पी सकते हैं…?

ऋग्वेद में ही कहा गया है – “यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इंद्र देव को प्राप्त हो।। (ऋग्वेद-1/5/5)”
“हे वायुदेव यह निचोड़ा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिश्रित करके तैयार किया गया है…
आइए और इसका पान कीजिए।। (ऋग्वेद-1/23/1)

सोमरस और शराब एक नहीं..

ऋग्वेद में सोम में दही और दूध को मिलाने की बात कही गई है, जबकि यह सभी जानते हैं कि शराब में दूध और दही नहीं मिलाया जा सकता…
भांग में दूध तो मिलाया जा सकता है लेकिन दही नहीं, लेकिन यहां यह एक ऐसे पदार्थ का वर्णन किया जा रहा है जिसमें दही भी मिलाया जा सकता है… इसलिए यह बात तो स्पष्ट हो जाती है कि सोमरस जो भी हो लेकिन वह शराब या भांग तो कतई नहीं थी और जिससे नशा भी नहीं होता था।

बात अभी जारी रहेगी…
सोमरस हवन में भी प्रयोग होता था..

सोम रस बनाने की प्रक्रिया वैदिक यज्ञों में बड़े महत्व की है…
इसकी तीन अवस्थाएं हैं- पेरना, छानना और मिलाना..
वैदिक साहित्य में इसका पूरा वर्णन लिखा हुआ है..

सोम के डंठलों को पत्थरों से कूट-पीसकर तथा भेड़ के ऊन की छलनी से छानकर प्राप्त किए जाने वाले सोमरस के लिए इंद्र, अग्नि ही नहीं और भी वैदिक देवता लालायित रहते हैं, तभी तो पूरे विधान से होम (सोम) अनुष्ठान में पण्डित सबसे पहले इन देवताओं को सोमरस अर्पित करते थे..
बाद में प्रसाद के तौर पर लेकर खुद भी खुश हो जाते थे…

सोमरस की जगह पंचामृत..

आजकल सोमरस की जगह पंचामृत ने ले ली है, जो सोम की प्रतीति-भर है…
कुछ प्राचीन धर्मग्रंथों में देवताओं को सोम न अर्पित कर पाने की स्तिथि में कोई और चीज अर्पित करने पर क्षमा- याचना करने के मंत्र भी लिखे हैं…

बात अभी जारी रहेगी…
प्रभु जी अगर हम ऋग्वेद के नौवें ‘सोम मंडल’ में लिखे सोम के गुणों को पढ़ें तो यह संजीवनी बूटी के गुणों से मिलते हैं इससे यह सिद्ध होता है कि सोम ही संजीवनी बूटी रही होगी…

ऋग्वेद में सोमरस के बारे में कई जगह लिखा है…
एक जगह पर सोम की इतनी उपलब्धता और प्रचलन दिखाया गया है कि इंसानों के साथ-साथ गायों तक को सोमरस भरपेट खिलाए और पिलाए जाने की बात कही गई है…

वैदिक ऋषियों का चमत्कारी आविष्कार सोमरस एक ऐसा पदार्थ है, जो संजीवनी की तरह कार्य करता है…
यह जहां व्यक्ति की जवानी बरकरार रखता है वहीं यह पूर्ण सात्विक, अत्यंत बलवर्धक, आयुवर्धक व भोजन-विष के प्रभाव को नष्ट करने वाली औषधि है इसका आधुनिक शराब से कोई संबंध नही है…

ऋग्वेद में लिखा है “स्वादुष्किलायं मधुमां उतायम्, तीव्र: किलायं रसवां उतायम। उतोन्वस्य पपिवांसमिन्द्रम, न कश्चन सहत आहवेषु”
यानि की : सोम बड़ी स्वादिष्ट है, मधुर है, रसीली है..
इसका पान करने वाला बलशाली हो जाता है..
वह अपराजेय बन जाता है…

शास्त्रों में सोमरस लौकिक अर्थ में एक बलवर्धक पेय माना गया है, परंतु इसका एक पारलौकिक अर्थ भी देखने को मिलता है…
साधना की ऊंची अवस्था में व्यक्ति के भीतर एक प्रकार का रस उत्पन्न होता है जिसको केवल ज्ञानीजन ही जान सकते हैं…
प्रभु जी सोम रस की अनुपलब्धता के बाद ही पंचामृत का निर्माण हुआ है।
लेकिन सोमरस की बात ही निराली थी।
महर्षि कण्व ऋषि ने मानवों पर सोम का प्रभाव इस प्रकार बतलाया है- ‘यह शरीर की रक्षा करता है, दुर्घटना से बचाता है, रोग दूर करता है, विपत्तियों को भगाता है, आनंद और आराम देता है, आयु बढ़ाता है और संपत्ति का संवर्द्धन करता है..
इसके अलावा यह विद्वेषों से बचाता है, शत्रुओं के क्रोध और द्वेष से रक्षा करता है…

कण्व ऋषि के अनुसार सोमरस उल्लासपूर्ण विचार उत्पन्न करता है, पाप करने वाले को समृद्धि का अनुभव कराता है, देवताओं के क्रोध को शांत करता है और अमर बनाता है’..
सोम विप्रत्व और ऋषित्व का सहायक है…
सोम अद्भुत स्फूर्तिदायक, ओजवर्द्धक तथा घावों को पलक झपकते ही भरने की क्षमता वाला है, साथ ही आनंद की अनुभूति कराने वाला है…

सोमरस देव और मानव दोनों को यह रस स्फुर्ति और प्रेरणा देने वाला था..
देवता सोम पीकर प्रसन्न होते थे; इन्द्र अपना पराक्रम सोम पीकर ही दिखलाते थे..
कण्व ॠषियों ने मानवों पर सोम का प्रभाव इस प्रकार बतलाया है: ‘ यह शरीर की रक्षा करता है, दुर्घटना से बचाता है; रोग दूर करता है; विपत्तियों को भगाता है; आनन्द और आराम देता है; आयु बढ़ाता है…

सोम का सम्बन्ध अमरत्व से भी है..
वह स्वयं अमर तथा अमरत्व प्रदान करने वाला है..
वह पितरों से मिलता है और उनको अमर बनाता है..
कहीं-कहीं उसको देवों का पिता कहा गया है, जिसका अर्थ यह है कि वह उनको अमरत्व प्रदान करता है…
अमरत्व का सम्बन्ध नैतिकता से भी है…
वह विधि का अधिष्ठान और ॠत की धारा है वह सत्य का मित्र है…

अंत मे आप यह जान लीजिए कि सोमरस एक अद्वितीय पदार्थ होता था जिसका किसी भी प्रकार से शराब से कोई संबंध नही था और वर्तमान का कोई भी पदार्थ उसके समकक्ष नही है।

जय श्री राम🙏

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